hindisamay head


अ+ अ-

कविता

मेरी इच्छाएँ

बद्रीनारायण


पानी, अग्नि, हवा
विष और शहद से बनी
चाकू के सान सी पजी
विजय, दूसरों पर विजय की उन्मत्त कामना से भरी
हे मेरी इच्छाएँ।
विजय, हर जगह विजय !
तुम्हें पता नहीं
यह दुनिया अजीब रणक्षेत्र है
जिसमें विजयी जीतते ही हारने लगता है
वह आत्मा, मन, चेतना, संवेदना
हारने लगता है
वह भाव और भंगिमाएँ हारने लगता है
वह प्रेम हारने लगता है

भ्रम की सेना, छल के सेनापति
और मद के हथियारों से लैस
हे विजय कामिनी
समझो इस द्वंद्व को
कि इस प्रक्रिया में वह स्वयं को हारने लगता है

विजेता को विजय मिलती ही है उसकी हार की शर्त पर
यह बात समझो
ब्लॉग पर लड़ाई लड़ती
नेट पर झूलती
मोबाइल पर मचलती
शक्ति उन्मत्त, विजय की मृगतृष्णा में
फँसी मेरी कामिनी।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में बद्रीनारायण की रचनाएँ